कोर्ट ने कहा- अभियोजन को संदेह के परे यह प्रमाणित करना होगा कि संबंधित ने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया था।
Bilaspur News: एक मामले की सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कहा कि आत्महत्या के मामले में आरोप साबित करना अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है। अभियोजन पक्ष को एक उचित संदेह से परे यह साबित करना होगा कि उस व्यक्ति ने मृतक की आत्महत्या में सहायता की थी। दरअसल गांव की पंचायत ने एक प्रेमी जोड़े को सजा सुनाई है. युवती ने आत्मग्लानि से त्रस्त होकर आत्महत्या कर ली। पंचायत ने पंचनामा जारी कर घटना के लिए लड़की के पति, प्रेमी और पत्नी को जिम्मेदार ठहराया है। निचली अदालत ने इस आधार पर तीनों को तीन से सात साल कैद की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने पलटी थी सजा।
देवकी बाई, उसके पति सागर राम, प्रेमी चंदू राम और उसकी पत्नी चमारिन बाई को ग्राम पंचायत ने सामाजिक बहिष्कार की सजा सुनाई थी। इससे तंग आकर देवकी बाई ने 30 मई 1999 को जहर खाकर आत्महत्या कर ली। चंदूराम की पत्नी चमारिन को भी जहर दिया गया था, लेकिन वह बच गई। देवकी बाई आत्महत्या मामले में पंचायत पंचनामा के आधार पर मृतक महिला के पति चंदूराम, चमारिन बाई व सागर राम के खिलाफ गुरुर पुलिस ने भादवि की धारा 120बी व 306 के तहत मामला दर्ज किया था. सत्र अदालत ने तीनों को सात साल कैद की सजा सुनाई थी। जेल में रहते हुए देवकी के पति सागर राम ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। हालांकि, फैसला होने से पहले ही उनकी मौत हो गई।
यह कहा है कोर्ट ने
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध करने के लिए मन की स्पष्ट स्थिति होनी चाहिए। अभियोजन पक्ष को एक उचित संदेह से परे साबित करना होगा कि सजायाफ्ता व्यक्ति दुष्प्रेरक था।